“जिसे जूनून ए मोहब्बत अता किया तूने”
मुझे कव्वाली से कुछ ख़ास लगाव रहा है। छुटपन में कुछ सुनी, अब याद नहीं कैसे कहाँ क्योंकि यादों पे बारिश की ओस जमी है। और बाद में तो ख़ैर शौक ही हो गया, इधर उधर सुन सुन के जैसे शौक बन जाते हैं। मैं आपको थोडा और अंदर ले चलता हूँ की क्यों मैं इससे इतना प्रभावित हुआ। दसवीं ख़त्म हुई थी, एक दोस्त का घर था जहाँ मैं अक्सर जाया करता था। “अबे ये सुन Stairway to heaven, इसे दुनिया का बेस्ट गाना माना जाता है”, इस तरह मेरा परिचय RocknRoll से हुआ। पिछले कुछ सालों से मेरा और कुछ दोस्तों का एक शौक रहा है, नए bands खोजना। और इसी का नतीजा है की एक दिन उसी दोस्त ने मुझे Radiohead के संगीत से मिलवाया। थोड़ी दिक्कत हुई इसे समझने में, पर कहीं न कहीं जुड़ गया मुझसे। Jonny Greenwood क्या चीज़ हैं यह मुझे PTA की ही THERE WILL BE BLOOD से पता चला। Shye Ben-Tzur के संगीत से मैं बिलकुल अंजान था, और जब मैंने उन्हें उर्दू में गाते सुना तो मेरे मन के सारे मेंढक मग्न हुए नाच उठे। मैं शायद आपको समझा न पाऊँ की क्यों मुझे कव्वाली पे नाचने के लिए जाम की ज़रुरत नहीं पड़ती, क्यों मुझे बिना नशा किये Pink Floyd सुनके अजीब ओ गरीब चीज़ें दिखाई देती हैं (और बेख़ुद कर देती हैं), क्यों मैं ISCKON के “प्रभुपाद प्रभुपाद” नाद पे झूम उठता हूँ, हालांकि न मैं उनके प्रभु को मानता हूँ न ही उन्हें। पर मैं यक़ीन से कह सकता हूँ की यह सब एक ही वजह से जुड़ी हुई हैं, मेरे विश्वास से की संगीत और सिनेमा खुद में पूरे हैं। उन्हें निरोध की ज़रुरत नहीं। आप संगीत को सिनेमा से मिला दीजिये और आपको एक पाक़ साफ़ फॉर्म मिलेगा। ‘JUNUN’ यही फॉर्म है।
मेरा मानना है की आर्ट को वैज्ञानिक की ज़रुरत होती है, पथ प्रदर्शन और नए प्रयोगों के लिए। मॉडर्न सिनेमा को जैसे मैंने जाना है, Paul Thomas Anderson मुझे इसके वैज्ञानिक मालूम हुए हैं। हर फ़िल्म एक दूसरे से जुदा, हर फ़िल्म तकनीकी तौर पे पिछली को पीछे छोड़ती हुई। शायद कोई फिक्स्ड स्टाइल न होना ही उनका स्टाइल हैं। तो मैं यह मानके तो गया ही था की JUNUN कुछ ख़ास होगी। Shye और Jonny Greenwood (Radiohead से एक अलग किस्म का प्यार है मेरा, उस band में सब individual genius भरे पड़े हैं) साथ में एक एल्बम बना रहे हैं, और PTA उसे फ़िल्म कर रहे हैं…अब इंसान बौराया नहीं ये सुनके तो दिल नहीं है उसके पास।
यहाँ हम जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट में इन कलाकारों को एक माँगणियार क़व्वाल समूह के साथ काम करते देखते हैं। मैं यह हलके में नहीं कहता, और मैं ये मानना चाहूँगा की मैंने काफी संगीत सुना है, पर मैंने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं सुना। PTA के ड्रोन शॉट्स जोधपुर को एक नयी परिपक्वाता से देखते हैं। उनके हर फ्रेम में संगीत इस क़दर है की आप दोनों को जुदा करके नहीं देख पाएंगे। एक क़व्वाली, जिससे एल्बम का नाम मालूम हुआ है, ने थिएटर में बैठे सभी को उसी ताल पे ताली बजाने पे मजबूर कर दिया, उनमे से एक मैं भी था। सिनेमा और संगीत का संगम ऐसे बेकाबू कर देता है, मैंने अब जाना। 53 मिनट तक मेरे रौंगटे खड़े रहे, मैं इतना हल्का आदमी तो नहीं हूँ। बाहर निकल के नाचने का मन होने लगा। पर मैं नाच नही पाया, मैं कुछ हल्का आदमी हूँ। ख़ालिस तस्वीर जो होती है, उसमे आर्टिस्ट कहीं न कहीं खुद को बना देता है। यहाँ आपको एक अभिव्यक्ति दिखेगी जिसे आप PTA की पिछली हर फ़िल्म में देख सकते है, Shye aur Jonny के संगीत में देख सकते हैं, इन कव्वालों की ताल में देख सकते हैं। और यही जूनून है, यही मक़सद है, यही ख़ुदा है।
मैं बस इस बेमिसाल मेल को देख के, सुन के पागल सा हो गया, की मुझे अलफ़ाज़ नहीं मिले। अब आप कैसे बयाँ कर सकते हैं की कुछ चीज़ें आपके साथ क्या कर जाएँ ?
मैं तमाम उम्र शब्दों को चेहरा देते आया हूँ, हर शब्द मेरे ज़हन में एक तस्वीर उकेर देता है। अब मुझे कभी “जुनून” की तस्वीर नहीं बनानी पड़ेगी। मैंने उसे साक्षात देखा है। Shye, Jonny और मांगणियारों के संगीत में, PTA की नज़र से, JUNUN में।
कहाँ बुत गिरा, कहाँ चैन पाया
मैं कैसे सुकूँ को सहता हूँ,
बना फलसफा कुछ यूँ ही बड़बड़ाते
मुसलसल जुनूँ में रहता हूँ।
(Bhaskarmani Tripathi is a chronically depressed and दिलफेंक individual who wants to make his moments last. Has been called names more than he’s been called by his name, not that there’s anything wrong with it. Hates adjectives, loves Hindi and Urdu and Almost Famous. Believes Rock n Roll saved his life. Although never seen, this is one of his most favourite moments in cinema. Tweets at @bolnabey)
(You can watch the film at Mubi)
nice post:)
This was such a brilliantly written post. Thank You for sharing this, Bhaskarmani.