Archive for March, 2017

To get the reference of the country in the header of the post, you have to watch the film. Surely that can’t be enough reason to watch it, so here’s Varun Grover’s recco post on the film.

“अबला बबाल देख
डायन छिनाल देख
कुलटा कमाल देख – सारा-रारा-रा”

ये फ़िल्म देख लीजिए सब लोग। बैठे-बैठे ढेरों कारण तो अभी गिना सकता हूँ। उसके अलावा, जो हर फ़िल्म में होता है कि जो गिनाया नहीं जा सकता (जैसे आँसू या तालियाँ), जो एक अंदरूनी जादू है – उसके लिए तो सिनेमा हॉल जाना ही पड़ेगा। (और जैसा कि अक्सर होता है, ऐसी फ़िल्में मेहनत करवाती हैं। शो कम हैं, दूर हैं, पब्लिसिटी नहीं है – लेकिन यही आपके प्यार की परीक्षा भी है।)

१ – Avinash Das की #AnarkaliOfAarah वहाँ जाती है जहाँ सिनेमा तो क्या, हम लोग असल ज़िंदगी में भी जाने से डरते हैं। सोच की उस हद तक। Male entitlement और female consent पे बहुत बात हो रही है पिछले कुछ समय से लेकिन फिर भी जो बातें और लोग उन mainstream debates से छूट गयीं/गए, या जो सही से नहीं कहीं गयीं, उन सबका धुआँधार निचोड़ है।

२ – स्वरा भास्कर (Swara Bhasker) ने जो आत्मा फूँकी है अनारकली में, अपने अस्तित्व का एक-एक कण डाल दिया है। ऐसी दमदार मुख्य किरदार कि आपको उसके लिए डर लगे।

३ – ग़ज़ब के गाने। छिछोरे से लेकर क्रांतिकारी तक – और कई बार दोनों ही एक साथ। रोहित शर्मा का संगीत, और Ravinder Randhawa, Ramkumar Singh, Dr सागर, और ख़ुद Avinash के बोल – (“हम खेत तू कूदारी, हम चाल तू जुआरी”), पावनी पांडे और स्वाति शर्मा की आवाज़ें – बेहतरीन।

४ – फ़िल्म की भाषा। इतनी प्रामाणिक भाषा बहुत कम हिंदी फ़िल्मों में सुनने को मिलेगी। भकुआना से लेकर सीजना – हर शब्द में रस है। जो भी ‘उधर के’ लोग हैं, उनको तो मज़ा ही आ जाएगा।

५ – फ़िल्म का पहला और आख़िरी सीन। दो बिंदुओं से वैसे तो एक लाइन बनती है लेकिन यहाँ एक पूरा वृत्त बनता है।

६ – ‘तीसरी क़सम’ को दिया गया छोटा सा, सुंदर सा tribute।

७ – अनारकली के universe के बाक़ी किरदार। Pankaj Tripathi का ‘नाच’, Sanjai Mishra का वीभत्स रूप, इश्तेयाक खान का हैरी, अनवर (Mayur More), मफ़लर, एटीएम।

८ – अविनाश दास की पहली फ़िल्म, एकदम independently बनायी हुयी, सिर्फ़ दोस्तों और पागलपन की मदद से – तो ऐसी चीज़ों से जो धुआँ उठता है वो अलग ही रंग देता है।

Varun Grover