Writer, observer, cynic – That’s how Varun Grover defines himself in his twitter bio. If you have been following this blog for a long time, you obviously know him. If not, he’s the multi-talented man behind the terrific lyrics of Gangs Of Wasseypur and is also a well known stand-up comic.
Like last year, Varun is writing his Mumbai Film Festival diary this year too.
यह निरा रोमांटिक सा आइडिया है, डायरियाँ लिखना. और मैं अब ३० पार करने के बाद ख़ासा रोमांटिक रहा नहीं. पर डायरी लिखना समय को पकड़ने की एक कोशिश भी है, जो लोग ३० पार करने के बाद ज्यादा करने लगते हैं. तो यह वो वाली डायरी है जो खुद को भरोसा दिलाना चाहती है कि इसकी असली value आज नहीं, आज से ५० साल बाद होगी जब हम ना होंगे, जब कोई इसे मुड़ के खोलेगा और इसे antique वाली इज्ज़त देगा.
इस ब्लॉग पर आखिरी पोस्ट पिछले साल के मुम्बई फिल्म फेस्टिवल की डायरी से ही है. साल बीता, लोग बिगड़े, देश पर और गर्त चढ़ी, और फिल्म फेस्टिवल वापस आया. आज सुबह तक सोचा था इस साल डायरी नहीं लिखूँगा क्योंकि इस बार फेस्टिवल का venue घर से बहुत दूर है…आने जाने में ही हर रोज़ साढ़े तीन घंटे बर्बाद हो रहे हैं तो लिखने के लिए अलग से समय कैसे निकले? लेकिन अभी अभी बस, १० मिनट पहले सोचा, कि समय तो उतना धीरे चलता है जितना तेज़ आप टाइप कर सकें. तो सिर्फ कोशिश है….जो आज है, कल हो सकता है ना हो.
Stories We Tell/2012/Sarah Polley/Canada : कम से कम एक उम्र में सबको लगता है कि उनका परिवार weird है. जिनको बचपन में लगता है, उनको बड़े होकर नहीं लगता (क्योंकि शायद वो खुद वैसे हो जाते हैं), और जिनको बचपन में नहीं लगता, उनको बड़े होकर लगता है. Sarah Polley ने अपने बिखरे से (महा-weird) परिवार को जोड़ने की कोशिश की है, अपने परिवार के हर सदस्य को एक ही कहानी अपने अपने निजी point-of-view से सुनाने को कहकर. Documentary और drama का इतना शानदार मिश्रण मैंने पहले तो कभी नहीं देखा. Sarah Polley और उनके पिता Michael Polley (जिनकी आँखें बहुत उदास लेकिन आवाज़ बहुत खनक वाली है) एक साउंड-स्टूडियो में हैं जहां Michael Sarah की दी हुयी एक स्क्रिप्ट अपनी आवाज़ में रिकार्ड कर रहे हैं. कैमरा चल रहा है, माइकल जो कहानी कह रहे हैं वो बाप-बेटी दोनों की है. लेकिन माइकल भी उसे ऐसे कह रहे हैं जैसे वो किसी तीसरे की हो. लेकिन धीरे धीरे और किरदार जुड़ते हैं, सब Sarah को Sarah की ही कहानी सुनाते हैं (“मुझे वो भी बताओ जो मुझे पता है, और ऐसे बताओ जैसे मैंने कभी नहीं सुना”, Sarah शुरू में ही यह निर्देश देती है), और आगे बढ़ते बढ़ते फिल्म memories, love, और closure पर एक अद्भुत व्याख्यान बन जाती है.
Beasts of the Southern Wild/2012/Benh Zeitlin/USA: बहुत चर्चे थे इस फिल्म के. Cannes फिल्म फेस्टिवल में Camera d’Or के अलावा ३ और अवार्ड जीते हैं और Sundance में Grand Jury Prize जीता है. मतलब जैसे कोई नामी पहलवान रिंग में आता है, वैसे यह फिल्म जमशेद भाभा थियेटर में आई. और शुरू के पाँच मिनट में ही पूरा मुकाबला जीत लिया. शुद्ध पॉपुलर सिनेमा की आत्मा (uplifting, underdog story), उसपर art cinema की तकनीक का चोगा (imaginative, allegorical, भयानक sound design और music), और चोगे में Indie Cinema की छोटी-छोटी जेबें. पत्थर जैसे बाप और 6 साल की, खुद को प्राग-ऐतेहासिक जीव मानने वाली बेटी की कहानी (हालांकि बहुत देर में पता चला कि वो बेटी है, बेटा नहीं) – जो उनके छोटे से टापू पर आये तूफ़ान के बाद का struggle ऐसे दिखाती है जैसे कविता कह रही हो. अगर थियेटर वाले बत्तियां जल्दी नहीं जलाते तो मैं अंत में और देर तक रोता.
Throw of Dice/1929/Franz Austen/India-Germany: यह वाली सिर्फ इसलिए देखी क्योंकि Germany से एक Orchestra आया था जो इस silent फिल्म के साथ live music बजा रहा था. यह अनोखा अनुभव फिर कहाँ मिलेगा यह सोच कर हंसल मेहता की ‘शाहिद’ आज कुर्बान करनी पड़ी. और जितना सोचा था, उससे कहीं ज्यादा मज़ा आया. फिल्म अपने आप में बहुत सरल, और काफी मायनों में मसाला थी. जर्मन निर्देशक को हिन्दुस्तानी exotica बेचना था शायद…गाँव की गोरी बनी हिरोइन को अपने पल्लू का भी सहूर नहीं था (क्योंकि वो कोई एंग्लो-इन्डियन ऐक्ट्रेस थी), हाथी, सपेरे, आग खाने वाले कलाबाज़ वगैरह बड़ी देर तक कैमरे के आगे रहे, राजा निरे ऐय्याश और प्रजा निरी stockholm complex की मारी. लेकिन असली खेल Orchestra का ही था. सिर्फ ८-१० तरह के trumpets, २ तरह के drums, और चिमटा-घंटी से उन्होंने जो समां बाँधा वो out-worldly था. एक तरह से फिल्म को कई जगहों पर reinterpret कर दिया उन्होंने. जहां सीन बहुत self-serious था, वहाँ orchestra ने ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ हैं’ का एक version बजा कर परदे की कहानी को एक अलग layer दे दी.
और फिल्म ख़तम होने पर मिली तालियों से musicians इतने खुश हुए कि उन्होंने जाते-जाते एक ऐसी धमाल धुन बजाई कि १००० लोगों से भरा auditorium खड़े होकर साथ-साथ लगातार ताली बजाता रहा. पहले दिन का आखिरी अलौकिक राग!
*********
कल क्या देखना है?: Ai Wei-Wei पर एक documentary है, Jacques Audiard की Rust and Bone है (जिसमें खूब भीड़ होने की पूरी संभावना है), और Takeshi Kitano की कान में पेचकस घुसा के मारने वाली Outrage:Beyond है.
(This was first posted on Varun Grover’s blog.)