राष्ट्रकवी प्रदीप के बारे में मैंने ज्यादा पढ़ा नहीं है, लेकिन माँ पापा की वजह से बचपन में इनके काफी गीत सुनें. मैं इनको ‘रुलाने वाले अंकल’ कहता था क्यूंकि इनके गाने सुनते वक़्त मुझ पर काफी अलग तरह का प्रभाव पड़ता था और एक निराशा सी होती थी. आज कवी प्रदीप का जन्मदिन है. सोचा कुछ यादें ताज़ा कर लू क्यूंकि कल मेरे पापा का जन्मदिन है और इसी बहाने पापा से नम्बर भी कमा लूँगा और शायद आप में से कुछ लोग प्रदीप को भी सुन लें. कवी प्रदीप का असली नाम रामचंद्र नारायणजी दिवेदी था. उनकी आवाज़ में वो ही खनक थी जो हम पुराने कवियों की आवाज़ में सुनते आये हैं. उन्होंने कुछ ऐसे हिंदी गाने लिखे हैं, जो हमारे ज़हन में घर कर चुके हैं, मगर शायद हम जानते नहीं है की वो प्रदीप की रचनायें हैं. उनके कुछ मशहूर गाने हैं
चल चल रे नौजवान
ए मेरे वतन के लोगों
दूर हटो ए दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है
आओ बच्चों तुम्हें दिखाए
दे दी हमें आजादी
कितना बदल गया इंसान
उनकी लिखी हुई प्यार की गुहार को ही सुन लीजये. फिल्म थी ‘अमर रहे प्यार’, गाना है ‘आज के इस इंसान को’. हिंदू मुस्लिम एकता के लिए शायद इससे मज़बूत गुज़ारिश मैंने नहीं सुनी. एक फ़कीर की तरह गया हुआ प्रदीप का ये गीत आपको बिना रुलाये ख़त्म नहीं होगा ये बात पक्की समझिये.
कैसी ये मनहूस घडी है,
भाइयों में है जंग छिड़ी है
रोती सलमा रोती है सीता ,
रोते है कुरान और गीता
प्रदीप जी को शायद कभी किसी से डर नहीं लगा क्यूंकि अपनी कविताओं या गीतों में वो सरकार या धर्म के ठेकेदारों को उनकी सही जगह दिखने से से चूकते नहीं थे. उस समय जब की हम सब धर्म के ठेकेदारों से घिरने ही लगे थे, प्रदीप ने उनको आड़े हाथों ही लिया था . अब उनके लिखे हुए गाने ‘कितना बदल गया इंसान को ही ले लीजये.
राम के भक्त, रहीम के बन्दे
रचते आज फरेब के धंधे
कितने ये मक्कार ये अंधे
देख लिए इनके भी धंधे
इन्ही की काली करतूतों से बना ये मुल्क मसान (शमशान)
कितना बदल गया इंसान
आज के माहौल में कोई ऐसा लिखे और किसी सियासी या धार्मिक दंड से बच जाये, ऐसा थोडा मुश्किल सा लगता है.
प्रदीप के गानों में, व्यक्ति को खुद से मिलाने की भी ज़बरदस्त कोशिश रहती थी. हम हमेशा बाहर की ताकतों को ही दोष देते हैं किसी भी बुरी बात के लिए, लेकिन खुद के अन्दर झाँकने से सब ही कतराते हैं. फिल्म दो बहनें के इस गाने को ही सुन कर देखिये..गाना था ‘मुखड़ा देख ले प्राणी, ज़रा दर्पण में’ गाने में मंजीरा इतनी ख़ूबसूरती से बजा है जिसकी तारीफ जितनी की जाए उतनी कम है और शायद इसीलिए ‘भजन’ के नाम से tag कर दिया जाता है ऐसे गानों को. अगर आप एस डी बर्मन के ‘वहां कौन है तेरा’ को पसंद करते हैं, तो इस गाने को भी सुन के देखिये, खुद ही समझ जायेंगे की मैं क्या कहना चाहता हूँ.
कभी तो पल भर सोच ले प्राणी
क्या है तेरी करम कहानी
पता लगा ले पडे है कितने दाग तेरे दमन में…
मुखड़ा देख ले प्राणी ज़रा दर्पण में..
कुछ और समझ नहीं आ रहा तो प्रदीप की कविता ‘कभी कभी खुद से बात करो’ की कुछ पंक्तियों से ही इस पोस्ट को समाप्त करता हूँ.
ओ नभ में उड़ने वालो, जरा धरती पर आओ।
अपनी पुरानी सरल-सादगी फिर से अपनाओ।
तुम संतो की तपोभूमि पर मत अभिमान में डालो।
अपनी नजर में तुम क्या हो? ये मन की तराजू में तोलो।
कभी कभी खुद से बात करो।
कभी कभी खुद से बोलो।
जन्मदिन मुबारक हो प्रदीप जी, हम सब वही के वही हैं अब तक, लेकिन आपकी कविताओं और गीतों का साथ है, और उसके लिए – धन्यवाद
उनकी कविताओं में भी हर तरह के भाव मिल जाते थें. आप उनकी कुछ रचनाये यहाँ पढ़ सकते है.
उनके कुछ गीत यहाँ सुन सकते हैं और अगर पोस्ट में कुछ गलतियाँ हैं तो बताइए.
– रोहित
Very interesting.
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