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विदा

Posted: January 5, 2014 by moifightclub in bollywood, cinema, Guest Post, RIP
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Posts on Farooque Shaikh saab are still pouring in our mailbox. Earlier Varun Grover wrote a post आम है, अशर्फियाँ नहीं (click here). And then actor Swara Bhaskar wrote another beautiful post about her memories and working experience with him (click here). This new post is by Sudeep Sohni, a first year screenwriting student at Film And Television Institute of India, Pune.

Farooque

फारुख शेख सेट मैक्स, ज़ी सिनेमा और स्टार टीवी पर दिखाई गई फिल्मों के कारण दिमाग में कुछ इस तरह बस गए कि अब स्मृति से छूट नहीं रहे. सिनेमा का एक सादा चेहरा, शुक्रिया तुम्हें, ये दिखाने के लिए मुझे कि सिनेमा इतना सादा भी हो सकता है.

ख़ामोशी के जंगल जहाँ अपनी पत्तियों की आवाज़ें सुनाते हैं

तनहाई का मंज़र जहाँ अपने पैरों के निशान छोड़ जाता है

जहां दूर से एक हाथ बस हिलता हुआ दिखाई देता है

पुकारने अपनी ही आवाज़

झक सफ़ेद कुर्ते में जहाँ एक मध्ययुगीन दशक मुंडेर पर बैठा

उड़ाता है सिगरेट के धुएं में बेबसी के छल्ले

जहाँ नुक्कड़ की पान की दुकान, ठेले की चाय और कमरे की बेरुखी

तकाज़ा करती है सदी की सबसे महकी दोपहर का

जहाँ शाम का ढलता सूरज और रात की उदासी

मचलते ख्वाब की नमी छत की कड़ियों में अटका जाती है

वहीँ से शुरू होता है सफ़र तुम्हारा.

 

विदा

उस ठहकती हंसी से

जिसमें अब भी बंद है संसार का सबसे ख़ूबसूरत समय

और

जो किसी भी भाषा की भाप से पकड़ में नहीं आएगा

वो समय जो दर्ज है आँखों की खिड़कियों में

और जो चाहे तब भी उड़ नहीं पायेगा भाप बन कर

बस जमा रहेगा

किरचन बन कर रुई की लुनाई-सा

कि जब तुम दिखोगे परदे पर कहीं टीवी के

दूर तालाब के किनारे

उतर आएगा ख़ामोशी का गर्म सोता

और बहता रहेगा रगों में आहिस्ता-आहिस्ता.