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बस इतना ही कहना है कि आज पिंजरा खुल रहा है। 3 साल की चप्पल घिसाई, घुड़सवारी, हवाबाज़ी, खुद को बहलाना, आपस में लड़ना, ट्रेनों के दरवाजों पर बैठे गुज़रते हुए गाँवों को देखते हुए किसी उलझे सीन को सुलझाना और ये भी सोचना कौनसा साला ये फिल्म बनने ही वाली है, बार बार बनारस के चक्कर और हर चक्कर में कम लौंगलता खाना ये सोच के कि बनारस तो अभी फिर आना है – के बाद आज सबका कुल जमा देश भर में फैली 240 स्क्रीनों पर टूटते तारों सा बिखर जायेगा।

बस इतना कहना है कि कुछ खास नहीं है कि इस फ़िल्म में अनेकों लोग शुरू से ही जुड़े हैं (मैं, रिचा, अविनाश, नितिन) – नाबालिग़ उमर के आशिकों की तरह – कई फ़िल्मों में जुड़े होते हैं। लेकिन ये खास है कि उनमें से बहुतों की ये पहली फ़िल्म है – नीरज घायवान, नितिन बैद, श्रुति कपूर, विक्की कौशल, श्वेता त्रिपाठी, और एक तरह से मेरी और अविनाश अरुण की भी। पहली फ़िल्म का नशा एक ही बार होता है, यही नियति है। पहले चुम्बन की तरह। ठीक से समझ भी नहीं आता कि हो क्या रहा है पर बहुत डिवाइन लगता है।

पूरी याद्दाश्त और पूरी कायनात मिटा के फिर शुरू करनी पड़ेगी अगर पहली फ़िल्म का कष्ट-रूपी आनंद दोबारा लेना है तो।

और जाते जाते बस इतना ही कहना है जो एक बार संजय मिश्रा जी ने कहा था – उम्मीद तो अपने बच्चों से भी नहीं करनी चाहिए, तो फ़िल्म से क्यों करें। रिव्यूज़ सुंदर आ गए हैं, कुछ शहरों में लग गयी है शिवजी की कृपा से, मार्केटिंग का खेला अपनी गति और दशा से चल रहा है, और ले-देकर फ़िल्म अब हमारे हाथ से गैस से टंच भरे गुब्बारे की तरह छूट चुकी है।

बचपन में जितना मज़ा गुब्बारे को हाथ में धागे से लपेटे रहने पर आता था, उतना ही उसे छोड़ देने पर भी। एक बार दुःख होता था – बिदाई हमेशा कठिन होती है – लेकिन एक अजीब सी खुशी भी ये देखकर कि वो उड़ा जा रहा है दूर किसी ऐसे आसमान जहाँ हम कभी नहीं जा सकते।

आँख से ओझल होता हुआ… बड़ा सा गुब्बारा जो हमारे हाथ में था अब एक बिन्दु से भी छोटा। आँख बस एक बार हटाई और ग़ायब!

– वरुण ग्रोवर

(“Our Roger Ebert wins Pulitzer” – Remember that image of Ebert holding the newspaper with this headline? No? Here.  I always thought what immense pride that one word “our” must have added. Similarly, it’s time for us to say Masaan is by “OUR” Neeraj Ghaywan and Varun Grover. Do watch it in theatres. It’s limited release but if you try, you can manage for that odd show timing too. This one deserves that little effort. Also, we are posting here 4 beautiful posters sketched in Madhubani style by Grover’s better half, Raj Kumari.)

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