Sumit Saxena is after me. Every time i call him, he asks me if i want to watch Mad Max again. Because he wants to watch it one more time. He has already seen it 11 times. Yes, you read that right. Why? Here you go.
Early nineties की बात है. 96 के वर्ल्ड कप में काम्बली अभी तक रोया भी नहीं था शायद. मैंने कुछ ही महीने पहले “प्रतिशोध की ज्वाला” पढ़ी थी और सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स मेरी favorite थी. “Favorite” से याद आया कि करीना की रिफ्यूजी अभी तक रिलीज़ नहीं हुई थी.
एक दोस्त जिसके पास बैट था, तीन खूबसूरत बहनें थीं और पिताजी के पास राजदूत थी, उसकी birthday में एक रेनोल्ड्स का फाइटर वाला पेन गिफ्ट व्रैप करके ले गया था. इस उम्मीद में कि, कुछ महीने बाद मेरी birthday पे अपनी राजदूत की इज्ज़त रखने के लिए वो एक बढ़िया सा gift लेके आएगा. उसके नाम के आगे ठाकुर भी था. जातिवाद की उतनी समझ नहीं थी तब, पर फिर भी ठाकुरों की इज़त से उम्मीद थी. (रेनोल्ड्स का फाइटर जावेद अख्तर ने अभी तक किया नहीं था शायद, पर यादें chronology का ख़याल नहीं करतीं. जावेद अख्तर से याद आया, बाबरी मस्जिद तब तक गिर चुकी थी, लेकिन पोखरण का ब्लास्ट अभी तक नहीं हुआ था. शायद! Chronology कि गलती 96 के वर्ल्ड कप के साथ भी शायद की हो मैंने)
केक कटने के थोड़ी देर बाद, केक जिस मेज़ पे कटा, उसके नीचे मुझे “ग्रैंड मास्टर रोबो” मिली, Pioneer के ऊपर. (Pioneer भी गलती हो सकती है, शायद Pioneer तब तक बंद हो चुका था; Forhans की तरह. मंजन और अखबार की तुलना यहाँ पे सिर्फ एक इत्तेफाक है.)
मैंने केक लपटने के तुरंत बाद ग्रैंड मास्टर रोबो लपट ली. २० रूपये की कॉमिक्स थी, किराये पे भी ३ रूपये प्रतिदिन की पड़ती . पिताजी की UP 32 1513 प्रिया को यह गंवारा नहीं था, राजदूत के ठाठ प्रिया वालों को नसीब नहीं होते. मैं सटासट पन्ने पलटता गया. ग्रैंड मास्टर रोबो अपने लेज़र वाली आँख से परछाइयों को गला रहा था, ध्रुव बिजली के तारों पे मोटर बाइक भगा रहा था, “अग्निमुख” नामक एक जीव बिजली के तारों से बिजली सोख कर अपने शक्ती बढ़ा रहा था.
११ पन्ने ही पलटे थे की UP 32 की बिजली शायद “अग्निमुख” ने चूस ली.
केक की बुझी हुई मोमबत्तियां फिर से जलाई गयीं, साथ में पैट्रोमाक्स भी. केक का second round चल रहा था, पर मैं केक की मोमबत्तियों के सहारे ग्रैंड मास्टर रोबो पढने में ज्यादा व्यस्त था. मुझे यह भी लग रहा था की अगर केक दोबारा नहीं खाऊं तो शायद यह लड़का मुझे अपनी कॉमिकस बिना किसी कॉमिक्स के exchange के पढने दे.
पूड़ी – सब्जी, पैट्रोमाक्स की रौशनी में छन के तीनों बहनों के हाथों, किचन से बाहर आ रही थीं. बहनों में अब दिलचस्पी नहीं थी और पूड़ी – सब्जी में भी नहीं. सोचा की खाना तो घर पे भी बना होगा, इससे पहले कि सब खा के उठ जाएँ, 62 पन्ने खत्म करना ज्यादा ज़रूरी है. “शान्ति” देखते देखते खाने कि खराब आदत पड़ गयी थी, काफी धीरे खाता था; भरोसा नहीं था कि खाना ख़तम करके पढ़ पाऊंगा.
सब खा के उठ गए, अपना return gift लेके चले भी गए और मैं एक चौथाई बची हुई केक कि कैंडल के नीचे अभी भी, भूखा, 59 वें page पे अटका हुआ था. “कुछ खाया भी नहीं तुमने”, कहके राजदूत वाली आंटी सता रही थीं. एकेले कमरे में अब सिर्फ मैं और मेरे दोस्त की तीन बहने बची थीं, जो मेरे निकल जाने के बाद ही खाना खातीं, वोह तीनों लडकियां भूखी नज़र से मुझे और मेरे हाथों में पलटती हुई “ग्रांडमास्टर रोबो” को देख रहीं थी. मैं बेशर्मी से पढ़े जा रहा था. 59 वें पन्ने पर “अग्निमुख”, transformer पे अपने हाथ जमाये बिजली सोख रहा था. उर्जा के लालच में वो बिजली सोखता रहा और आखिरकार फट गया.
उसके फटने के साथ ही कमरे में बिजली आ गयी.
बिजली के आते ही मेरा बेशर्मी से उस कमरे में बैठके बचे हुए पन्नों को पलटना मुश्किल हो गया. “थैंक यू आंटी, मैं चलता हूँ. मम्मी इंतज़ार कर रही होंगी.” तीनों बहनों को मैंने bye बोला , रौशनी में उन्हें देखते ही ख्याल आया- “एक से भी बात नहीं की मैंने आज शाम, कॉमिक्स भी नहीं पढ़ पाया- Shit!” (Shit शब्द भी मेरी vocabulary में नहीं था तब शायद, memory और chronology!!)
पर उनके घर से बाहर निकल कर जब तक मोहल्ले की सड़क पर पहुंचा, तब तक बहनों, केक, पूड़ी – सब्जी को बिलकुल भूल चुका था. याद था तो सिर्फ 59 वां पन्ना जहाँ उसे Pioneer पे उल्टा पलट के चलाया था.उनके घर से निकल के अपने घर की तरफ चलना शुरू ही किया था कि बत्ती फिर से चली गयी.
शायद, “अग्निमुख” कॉमिक्स में अभी भी जिंदा होगा-ख्याल आया.
१५ मई को जब “Mad Max” देखी, तो बहुत सारी बचपन कि कॉमिक्सों की याद आई. खासकर ग्रैंड मास्टर रोबो कि याद आयी. मुझे उस लड़के का नाम याद नहीं आया, न ही उसकी बर्थडे. पर जो भी कुछ याद आया सब गलत chronology के साथ याद आया, क्यूंकि 7000 दिन गुजरने के बाद, दिन यादों में भटक जाते हैं. मुझे ग्रैंड मास्टर रोबो पढने का रोमांच और अधूरा छोड़ने का दुःख याद आया. मुझे यह याद आया कि उसकी बहनों ने तब तक खाना नहीं खाया, जब तक सब खा के चले नहीं गए. और यह याद आया कि अग्निमुख के हाथों को ट्रांसफार्मर पर चिपका हुआ छोड़कर जब मैं बाहर आया था , तो बत्ती फिर से गुल हो गई थी, और पूरा मोहल्ला post-apocalyptic हो गया था.
– Sumit Saxena
(Sumit is an IIT graduate who loves to tell stories in all possible formats. On second thoughts, he would say fuck IIT, make it “a storyteller who loves to tell stories in all possible formats”)